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Ganga Maiya (1955)

  • Release Date1955
  • GenreDevotional
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
  • Run Time117 mins
  • Length3419.35 mm
  • Number of Reels12
  • Gauge35mm
  • Censor RatingU
  • Censor Certificate Number55842
  • Certificate Date14/01/1969
  • Shooting LocationShree Kant Studios (Chembur), Ranjit Studio (Dadar), Central Studios (Tardeo, Bombay)
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जन कल्याण की भावना से प्रेरित और भगवान विष्णु की आज्ञा से विवश होकर जब भगवती गंगाने पृथ्वी पर पदार्पण किया तो स्वर्ग के देवताओं को भी अपार आनंद हुआ। गंगाने हिमाचल राज की पुत्री के रुप में अवतार लिया और सुर नर मुनि सबको शान्ति मिली कि अब पृथ्वी से पाप का बोझ हलका होगा।

परन्तु महामुनी नारद को इतने से संतोष न हुआ। उनकी धारण थी कि गंगा केवल गंगा नहीं, बल्कि जगतजननी गंगामैया के रुप में जगत में प्रसिद्ध हो और उस रुप की प्राप्ति के लिये उन्होने अपने स्वभाव के अनुसार आकाश पाताल एक कर ही दिया।

हिमाचल राज की दोनो पुत्रियां गंगा और उमा दिन पर दिन बढ़ती गई। एक दिन दोनों खेलते खेलते कैलाश पर पहुंच गई और वहां एक साधारण घटना से ही शंकर भगवान से उनका विद्रोह हो गया। विद्रोह का रुप बढ़ता ही गया। समय पाकर नारदजीने आहुती में घी का काम किया परिणाम स्वरुप कैलाशपति और उमा में स्नेह-तथा गंगा से विरोध बढ़ गया। गंगा और शंकर की अनबन में नारदजी की बन आई और उन्हें अपनी लीला दिखाने का अनुपम अवसर मिल गया। गंगाने शंकर के मस्तक पर बैठने की प्रतिज्ञा कर ली जो अटल थी और उस प्रतिज्ञापालन के लिये उसे घोर तपस्या करनी पड़ी क्योंकि प्रतिज्ञा साधारण न थी। तक के लिये गंगा अपने माता पिता को बिलखते छोड कर चल पड़ी। नारदजी को अपनी सफलता और स्पष्ट दिखाई देने लागी। इस अवसर से लाभ उठाने के हेतु उनकी रचना के अनुसार सगर महाराज को अश्वमेध यज्ञ करना पड़ा सगरपुत्रों का अभिमान बढ़ा और यज्ञविध्वंस के साथ सगरपुत्रों का भी विनाश हो गया। गंगा को पृथ्वी पर प्रवाहित करने का ये अच्छा बहाना मिला और महाराज सगर को अपने पुत्रों के मोक्ष के लिये गंगा को पृथ्वी पर प्रवाहित करने के लिये तप करना पड़ा क्यूं कि गंगा के पवित्र जलस्पर्श से ही सगरपुत्रों का उद्धार निश्चित था। यह सब नारदजी का सुझाव और उनकी रचना थी।

एसी गंगा जो पतितपावनी-जगतजननी के रुप में शोभा पाये, एसी गंगामैया पृथ्वी पर उतरे जिसके जल से जगत का कल्याण हो, पतितों का उद्धार हो-इस जगतकल्याण की भावना में तीन पिढियों को होम हो गया-फिर भी गंगा....?

गंगा को पृथ्वी पर उतरना अनिवाय्र्य हो गया। उन तमाम संघर्षों और होम के बाद-अंत मे भगवान विष्णु की इच्छा, शंकर के प्रताप, नारद की नारदी, और भगीरथ के भगीरथ प्रयत्न से गंगा पृथ्वी पर उतरी-जो इतिहास मे अपना एक विशेष और पावन स्थान रखती है। जगत में गंगा-गंगामैया के रुप में प्रसिद्ध हो कर रही, सगर वंश के उद्धार के साथ साथ जगत को मुक्ति का मार्ग मिला, और धरती की गोद सदा के लिये हरी भरी तथा पवित्र हो गई। जै गंगामैया।

[From the official press booklet]